Saturday, July 20, 2019

तुम काम करते हो | Tum Kam Karte Ho



तुम काम करते हो | Tum Kam Karte Ho

 
ये जो गरीब की कटोरी में सिक्के उछाल कर खुशी बटोर लेते हो, ...
कभी समझा है दुख उसका? यही नियति है क्या उसकी?
'चिंतन हाय ये चिंतन', छोड़ो समय कहां, के तुम काम करते हो।
 
माँ बाप से उलझ कर बात ना करना, "मदर -फादर डे" पर प्यार 'फेसबुक' पे धरना,
यही सच है क्या? आडंबरों में भरे दिवालिया हो तुम?
पर तुम्हे चिन्ता कहां, तुम व्यस्त रहते हो, के तुम काम करते हो।
 
अपनी अहलिया* से शायद नाराज रहते हो,
खुद नही समझते कुछ भी और उसको समझाते हुए हर बात कहते हो,
कभी समझा है उसको भी, उसका दुख उसकी पीड़ा और वो अकेलापन?
छोड़ो तुम समय व्यर्थ ना करो, के तुम काम करते हो।
 
अपने ही बच्चों से अक्सर अदावत* में रहते हो,
वो अल्लढ़ता वो किलकारियां वो प्यार कहां गुम है सब?
केवल एकेडमिक्स बिन संस्कार तो कोई दिशा नही,
इस विघटन की भी तुम फिक्र ना करो, के तुम काम करते हो।
 
ये मोबाइल में प्रेम और व्हाट्सएप्प पर गुस्सा दिखाना,
ये ' स्लैंग, इमोजी और स्माइली ' का जमाना,
समय होने पे मिलकर दो बात ना करना, पर प्रदर्शन दुनिया को दिखाना,
हाय रे प्रेम, अगर इस प्रेम को मजनू ने समझा होता,
तो वो संभव ही तथागत हो गया होता,
छोड़ो इस पागलपन को, तुम खुश रहो, के तुम काम करते हो।
 
ये सोशल मीडिया पर 'व्यक्ति विशेष की भक्ति ', देश प्रेम और अदभूद साहस,
हिन्दू, मुस्लिम और जाति पर देश खूब बनाते और इसका विकास करते हो,
छोड़ो ये तो नवनिर्माण है, कैसा चिंतन केवल वंदन,
तुम निश्चिन्त रहो, सच है के तुम काम करते हो।
 
ये छद्मवेश*, ये अंतर्द्वंद और ये मानसिक पीड़ा,
दिवालियेपन में भी निश्चिन्त रहो, तुम्हे समय कहां,
तुम नही आराम करते हो, तुम सर्वदा काम करते हो।।
 
 
अहलिया*: धर्म पत्नी
अदावत*: लड़ाई झगड़ा
छद्मवेश*: बनावटी परिधान
 
 
--विव
 
 

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