दिनकर और जीवन | हिंदी कविता
।। दिनकर और जीवन ।।
उदयाचल में सूर्य खिल उठा
हिलें पात डाली डाली
चहक उठे हैं सुप्त विहग गण
भोर हुई है मतवाली ।
मध्यांचल में सूर्य बढ़ा जब
विभा तप रही विकराली
अस्त-व्यस्त फ़िर रहा जीव भी
घाम डस रही ज्यों व्याली ।
दूर क्षितिज पर सुर्ख़ छटा वह
नई वधू की है लाली
महक रही सब कुसुम लताएँ
साँझ यहाँ मधु की प्याली ।
अस्ताचल में सूर्य अस्त अब
निशा दिख रही कुलपाली
जड़ हो रहा देख फ़िर जीवन
अंधयाली की व्यथा निराली ।।
--विव