Sunday, August 1, 2021

अंतर्मन | हिंदी कविता

 




।। अंतर्मन ।।


क्रुद्ध सूर्य की तप्त ज्वाल मैं

क्षुब्ध सिंधु की गहराई हूँ

विष्णु का मैं चक्र सुदर्शन

अंतर्मन की परछाई हूँ ।


दुःखी हृदय का दग्ध भाव मैं

पल-पल घिरती तन्हाई हूँ

निर्धन का मैं दारुण रुदन

अंतर्मन की रुसवाई हूँ ।


पूज्य शारदा की वीणा मैं

याद पिरोती पुरवाई हूँ

प्रेम पीयूष मैं करती क्रीड़ा

अंतर्मन की शहनाई हूँ ।


आदि जगत का परम समर मैं

शिशु भरे वो अँगड़ाई हूँ

कवि साधता मैं वो आख़र

अंतर्मन की चौपाई हूँ ।।


--विव

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