Sunday, August 1, 2021

रावण-हनुमान संवाद | हिंदी कविता

 



।। रावण-हनुमान संवाद ।।


ब्रह्मदंड की मूर्छा

नागपाश का बंधन

हनुमत असुरों में घिरे

त्रास हरें रघुनंदन ।


वानर बंधन देखकर

हँसता है दसशीश

पुत्र निधन संताप पर

छुपा रहा है टीस ।


सभा मध्य हनुमत खड़े

देख रहे हुंकार

देव, शनि कर जोड़ते

करते हैं जयकार ।


गिरी दूर विद्युत कहीं

ऐसे रावण बरसा

बता दुष्ट तू कौन है

लगे वानरों जैसा ।


क्यों तूने वह बाग उजाड़ा

किस हट वश असुरों को मारा

राष्ट्र द्रोह का दंड भरेगा

तूने मम सुत है संहारा ।


नहीं मूर्ख तू जानता

रावण का प्रतिशोध

हम असुरों की क्रूरता

चंद्र, रवि को बोध ।


क्षण भर का फ़िर मौन रख

बोले हनुमत वीर

रघुनंदन का दूत मैं

धरो जरा तुम धीर ।


तेरा परिचय जानते

वीर सभी वानर हैं

वालि से संधि करे

तू कैसा कायर है ।


सहस्त्रबाहु का भुजबल

तुझे नहीं क्या याद

कैसी पीड़ा थी सही

बता पते की बात ।


मैंने वो तमिचर हने

लगा रहे जो घात

विटप, तरु को तोड़ना

वानर की है जात ।


वनवासी का दूत तू

आडंबर करता है

मृत्यु निकट है देख भी

जरा नहीं डरता है ।


राम नाम ही सत्य है

राम नाम की आस

राम नाम में बल बड़ा

राम नाम विश्वास ।


शंकर के वरदान पर

तू फूला जाता है

शंकर के जो ईश हैं

समझ नहीं पाता है ।


माया और अभिमान वश

सीता हर लाया है

रघुनंदन की संगिनी

मृत्यु संग लाया है ।


करुणा के वे स्रोत हैं

तजो बैर दसशीश

वैदेही वापस करो

औऱ नवाओ शीश ।


भरे क्षोभ, अभिमान वश

खीझ रहा दसग्रीव

सब मिल मारो दुष्ट को

काटो सठ यह जीव ।


काल क्रोध बन घूमता

खंडित होते काम

रावण की निश्चित गति

भला करें श्रीराम ।।


--विव

अंतर्मन | हिंदी कविता

 




।। अंतर्मन ।।


क्रुद्ध सूर्य की तप्त ज्वाल मैं

क्षुब्ध सिंधु की गहराई हूँ

विष्णु का मैं चक्र सुदर्शन

अंतर्मन की परछाई हूँ ।


दुःखी हृदय का दग्ध भाव मैं

पल-पल घिरती तन्हाई हूँ

निर्धन का मैं दारुण रुदन

अंतर्मन की रुसवाई हूँ ।


पूज्य शारदा की वीणा मैं

याद पिरोती पुरवाई हूँ

प्रेम पीयूष मैं करती क्रीड़ा

अंतर्मन की शहनाई हूँ ।


आदि जगत का परम समर मैं

शिशु भरे वो अँगड़ाई हूँ

कवि साधता मैं वो आख़र

अंतर्मन की चौपाई हूँ ।।


--विव

दिनकर और जीवन | हिंदी कविता

 



।। दिनकर और जीवन ।।


उदयाचल में सूर्य खिल उठा

हिलें पात डाली डाली

चहक उठे हैं सुप्त विहग गण

भोर हुई है मतवाली ।


मध्यांचल में सूर्य बढ़ा जब

विभा तप रही विकराली

अस्त-व्यस्त फ़िर रहा जीव भी

घाम डस रही ज्यों व्याली ।


दूर क्षितिज पर सुर्ख़ छटा वह

नई वधू की है लाली

महक रही सब कुसुम लताएँ

साँझ यहाँ मधु की प्याली ।


अस्ताचल में सूर्य अस्त अब

निशा दिख रही कुलपाली

जड़ हो रहा देख फ़िर जीवन

अंधयाली की व्यथा निराली ।।


--विव

प्रेम निशानी | हिंदी कविता

 




।। प्रेम निशानी ।।


नयन सेज से बहता पानी

दग्ध हृदय में यही रवानी

मधुर प्रेम और मोहित चातक

प्रेयस गा रहा कथा पुरानी ।


मेह ऋतु के पहले बादल

रिमझिम करता गिरता पानी

यूँ भीगा मैं यूँ भीगी तुम

शिव से जैसे मिले शिवानी ।


सर्द हवा और छाया कोहरा

कोयल कूके अमृत वाणी

देख पपीहा कुछ इठलाया

गहन प्रेम की यही निशानी ।


प्रेम कुसुम पर परिजन पीड़ा

जात पात है प्रथा निभानी

तिल तिल कर यूँ मरता यौवन

होती फ़िर है व्यर्थ जवानी ।।


--विव

प्रेम पीर कुछ दे जाता है | हिंदी कविता

 




।। प्रेम पीर कुछ दे जाता है ।।


मंद-मंद पल्लव का मरमर

भाव पुराने बिसराता है

प्रेम डगर और कुंठित मन फ़िर

ताप हृदय में दे जाता है ।


कूक-कूक कोयल मधुरित स्वर

स्वप्न सुनहरे सहलाता है

उच्छ्वास फ़िर वचन अधूरा

घाव गहन कुछ दे जाता है ।


भ्रमर-भ्रमर अलि गुंजित गायन

वफ़ा, सदाएं गोहराता है

उर तृष्णा फ़िर पसरा वेदन

अश्रु नयन में दे जाता है ।


झर-झर करता विस्मित निर्झर

व्यथा वही जो दोहराता है

आत्म द्वंद्व फ़िर प्रेयसी पीड़ा

प्रेम पीर कुछ दे जाता है ।।


--विव

@Viv Amazing Life

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