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Saturday, July 20, 2019

सपना सा लगता है | Sapna Sa Lagta Hai


 सपना सा लगता है | Sapna Sa Lagta Hai


वो भाई की शादी और लखनऊ की गलियां,
शादी में रिसेप्शन पार्टी और पार्टी में शर्माती तुम,
तुमसे बात करने की कोशिश और हमारी जासूसी करते हमारे ही परिजन,
तुमसे मिलना, सपना तो नही पर सपना सा लगता है।

वो फेसबुक की चैट और चैट में घटों बातें करते हम,
वो शायरी, वो कविताएं , वो रचना सब तुम्हारे लिए ही तो थीं,
वो पहली फ़ोन में हुई बात, हंसते-हंसते कुछ ना कहना और वो चुप्पी,
वो फ़ोन कॉल, सपना तो नही पर सपना सा लगता है।

वो कौशाम्बी का पैसिफिक मॉल और उस मॉल में मैं,
मेरी आँखें कुछ खोई सी किसी को ढूंढती शायद,
एक परी का आना और फिर जैसे मेरी तलाश पूरी हो गयी हो,
हम मिले कुछ ऐसे जैसे तकदीरें उस जहान की , लिखी हों किसी ने इस जहान में,
उस परी से मिलना, सपना तो नही पर सपना सा लगता है।

छिप-छिप के मिलना और घर मे कुछ भी ना कहना,
वो प्यार, वो एहसास और मन मे बिछड़ जाने की वो शंका,
तुम तो मेरी ही थी, फिर जाने क्यों कमजोर पड़ता था, डरता था ये दिल,
वो डर, सपना तो नही पर सपना सा लगता है।

वो ई.डी.म. में मूवी और वो एडवेंचर आइलैंड की राइड्स,
वो लक्ष्मी नगर की बारिश और उस बारिश में भीगते तुम और मैं,
वो घर मे बात ना करने पर तकरार और आंखों में उतर आने वाला बहुत सा प्यार,
वो प्यार, सपना तो नही पर सपना सा लगता है।

वो तकल्लुफ़ में घिर कर तुम्हारी बात करना मम्मी-पापा से,
बड़ों का वो गुस्सा और क़ाबिल बेटे के नाक़ाबिल होने पर नाराज़गी,
परिवार को ना मना पाने की वो खीज वो झुंझलाहट और उसमे तिल-तिल मरता मैं,
वो तिल-तिल मरना, सपना तो नही पर सपना सा लगता है।

मेरा टूटता दिल और खुद को मार कर तुमसे वो 'ना' कहना,
सपनों के टूटने की आवाज नही होती, ख्वाइशों का मरना देखा है कभी?
तुम्हारी नम आंखें और कांपती आवाज मुझको अब भी याद है,
तुम्हारा कहना 'विवेक', सपना तो नही पर सपना सा लगता है।।


@और नही लिख सकता, उसको रुस्वा नही कर सकता, जहाँ रहे खुश रहे यही दुआ है मेरी।


--विव

बेहद आम सी लड़की | Behad Aam Si Ladki



बेहद आम सी लड़की | Behad Aam Si Ladki

 
वो जगना सर्द रातों में, फ़िर ठिठक कर तारों को तकना,
टपकना ओस का देहरी पर और सुबह मोती सा खिल जाना,
बला की कशमकश में यूँ कभी मैं याद करता था, क़भी वो याद आती थी,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।

जनवरी का महीना और शहर का कोहरे में घुल जाना,
ना सूरज, ना रोशनी ही कोई, सिर्फ़ धुआं और धुएं में आती वो,
हूर तो नही ना ही वो कोई अप्सरा थी, पर मुझे अपनी सी लगती थी,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।

मेरी आँखों का खुलना, सुबह की सैर और वो भी उसकी गली तक,
उसके घर की छत और नहा कर छत पे आती वो,
उसका मासूम सा चेहरा और उस पर झटकना गीले बालों को, उफ़्फ़,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।

गंगा का किनारा और वो अस्सी की शाम,
आना उसका और वो घाट पर पूजा, ना बिंदी ,ना चूड़ी, ना पायल ही सही,
बिना श्रृंगार के भी वो, देवी ही लगती थी,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।

वो उसका बाग़ में आना अपनी सहेलियों संग,
वो अठखेली, वो अल्लढ़पन और वो हुमक,
वो शाम का सहर होना आँखों ही आँखों मे,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।

वो देखना मुझे पलभर को और फिर नजरअंदाज कर देना,
मैं पसंद था उसको, शायद ये वो खुद से छिपाती थी,
उसकी हया ये थी या घर की मजबूरियां, कुछ कह ना पाती थी,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।

इज़हार मुश्किल था पर एक दिन कर ही दिया मैंने,
गुस्से में दमकती वो, वो गाली वो थप्पड़ और रूठकर चले जाना,
मेरा दीवानापन और फ़िर उसका इकरार ना करना, सब याद है मुझे,
वो बेहद आम सी लड़की, मुझे कुछ ख़ास लगती थी।।


--विव


अधबुनी सी जिंदगी | Adbuni Si Zindagi



अधबुनी सी जिंदगी | Adbuni Si Zindagi


भरपूर प्रेम किया मुझे, जो बस में था दिया मुझे,
जो सही था वही किया, जो गलत था नही दिया,
क्यों व्यर्थ मै रूठा रहूँ, माँ-बाप से व्यथित हो छूटा रहूँ,
ये कुछ अनछुए सवाल हैं और अनछुई सी जिंदगी।

तब दोस्तों की भीड़ थी, और पत्थरों का खेल था,
अब पत्थरों की भीड़ में एक दोस्त की तलाश है,
जब दोस्त ही मिला नहीं, मैं दुश्मनी क्यों ठान लूँ,
ये कुछ अनमने सवाल हैं और अनमनी सी जिंदगी।

ना दिनभर लड़ते भाई-बहन, ना वो खिलखिलाता बचपन रहा,
माँ-दादी ने गढ़ा जो, अब वो टोपी, मोजे, स्वटेर कहाँ?
ना अब पापा की साइकिल, और ना नानी की गोद है,
ये बिखरे कुछ सवाल हैं और कुछ बिखरी सी जिंदगी।

ना स्नेह था ना प्यार था, उससे कहाँ इक़रार था,
वो किसी और का हो गया, एक ख्वाब था जो खो गया,
फ़िर ख्वाइशों की बात थी, और ख्वाईशें बदल गयीं,
ये कुछ अटपटे सवाल हैं और अटपटी सी जिंदगी।

जिन्हें मंज़िलों की आस थी, उनसे रास्ते नाराज़ थे,
मुझे रास्तों से प्यार था, मुझे मंजिलें मिलती रहीं,
मंजिलें तो खुद राह हैं, मंजिलों पर गुमान क्या,
ये गहरे कुछ सवाल हैं और कुछ ग़हरी सी जिंदगी।

प्यारा सा एक हमसफ़र, तक़दीर से मिला मुझे,
ख्वाबों से बढ़कर चाहतें और सपनों से प्यारा ये सफर,
जहाँ प्यार था अब दूरियाँ, क्यों दूरियों की तलब मुझे,
ये कुछ अनसुलझे सवाल हैं और अनसुलझी सी जिंदगी।

कुछ अनमना सा झाँकता, कुछ भागता कुछ दौड़ता,
मुझे जिस पल की तलाश थी, बेटे में मैंने जी लिया,
अब उछलूँ -कुदूँ, खेलूँ सदा, पर हाय अब समय कहाँ,
ये कुछ अधबुने सवाल हैं और मेरी अधबुनी सी जिंदगी।।

--विव

आँखों का पानी, अधूरी कहानी | Ankhon Ka Pani, Adhuri Kahani



आँखों का पानी, अधूरी कहानी | Ankhon Ka Pani, Adhuri Kahani


वो रिमझिम सी बूँदों का खिडक़ी पे आना,
नम मिट्टी की सोंधी महक का लुभाना,
उस बारिश में भींगी, सहमी एक दीवानी,
वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।

नज़ाकत से उसका वो कूचे पे आना, गले को झटक-कर झुल्फ़े गिराना,
क्यों शरीफ़ों की क़िस्मत में गिरना लिखा है?
प्यार की महक, हवा कुछ रूहानी,
फिर वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।

वो पागल सा लड़का जवानी में गुम था,
सपनें तो बड़े थे पर हौसलों से कम था,
इश्क़ में चाहतों की चढ़ी वो रवानी,
फिर वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।

वो आशिक़ की दुविधा, इज़हार की कोशिश,
मशक्क़त बड़ी थी, समझ की कमी थी,
पर मिलना था उनको, मिल ही गए वो,
फिर वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।

वो ज़माने में प्रेमियों का सरेआम मिलना,
चातक मिला हो, पहली बारिश से जैसे,
वो दिलकश थी बातें और गहरे थे वादे, उन्होंने किये थे,
फिर वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।

जगमगाते दिए फ़िर तूफानों की आहट,
घरों में गिरी हो एक बिजली सी जैसे, मगर अब तबाही की किसको फिकर है?
फ़िज़ा जानती है ये कहानी पुरानी,
वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।

वो विरह की पीड़ा, उसको खोने का दुख भी,
जैसे तन्हा भंवर में अटकती हों सांसें, भटकती जवानी,
वो भीगा सा आँचल, वो कटती कलाई,
फिर वो आँखों का पानी, अधूरी कहानी।।


--विव


@Viv Amazing Life

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