Sunday, August 23, 2020

नन्हा बच्चा | Nanha Bachcha





नन्हा बच्चा | Nanha Bachcha

आज भी मेरे अन्तर्मन में,
एक छोटा बच्चा रहता है,

वो खिलखिलाक़े हँसता है,
और सूरज से आंख लड़ाता है,

वो हवा से रेस लगाता है,
कभी लहरों सा बलखाता है,

वो आसमान में उड़ता है,
कभी भाई बहन से लड़ता है,

आइसक्रीम के लिए मन अब भी ललचाता है,
माँ की एक आवाज़ पे वो भागा-भागा जाता है,

आज भी मेरे अन्तर्मन में ,
एक नन्हा बच्चा रहता है।।

क्षमाप्रार्थी | Kshamaprarthi





 क्षमाप्रार्थी | Kshamaprarthi

बिना वजह अब तुमसे मैं संवेदना नही दिखाऊंगी,
सच तो यह है कि तुमको मैं लाचार देख न पाऊंगी
अब समय आ गया है जब तुमको सम्मान से जीना सिखाऊंगी,
क्षमाप्रार्थी हूँ पर मैं बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगी।

एक धूमिल सी स्मृति है जब मैं उंगली थामे चलती थी,
फिर हाथ छोड़कर भी तुमने, मुझ मे विश्वास दिखाया था,
समय आ गया है जब दूर खड़ी होकर, तुममें भरोसा वही जगाऊंगी,
क्षमाप्रार्थी हूँ पर मैं बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगी।

याद है अब भी जब तुमने रंग कई दिखलाये थे,
फिर एक दिन तुमने साथ बैठकर उनका मोल बताया था,
समय आ गया है जब मैं तुमको जीवन के रंग नए दिखाऊंगी,
क्षमाप्रार्थी हूँ पर मैं बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगी।

हल्का सा कुछ याद है मुझको जब तुमने मेरे आंसू पोछे थे,
फिर एक दिन तुमने मेरा कठिनाई से द्वंद कराया था,
समय है वो जब मैं तुमको मुश्किल में हंसना सिखाऊंगी,
क्षमाप्रार्थी हूँ पर मैं बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगी।

धुंधला सा स्मरण है जब मेरा खुद से विश्वास डगमगाया था,
तब तुमने मेरा हाथ पकड़कर थोड़ा सा हड़काया था,
अब वक्त आ गया है, तुमको वैसे ही हड़काऊंगी,
क्षमाप्रार्थी हूँ पर मैं बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगी।

गलत समझना ना तुम मुझको , मैं कुछ ऐसा कर जाऊंगी,
बूढ़े हो कमज़ोर नहीं, तुमको यह एहसास कराऊंगी,
जब तुम होगे एकाकी पथ पर, नेपथ्य से साथ निभाऊंगी
क्षमाप्रार्थी हूँ पर मैं बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगी।


कोख | Kokh





कोख | Kokh


देखो न माँ आज खुशियों ने कुंडी सी खटकाई है,
तुझसे मिलने दूर देश से नन्ही परी एक आई है,
मैंने सोचा मुझसे मिलकर तुम बहुत अधिक हर्षाओगी,
मुझको अपनी गोद मे पाकर फूली नही समाओगी।

मैंने सोचा तुमसे मिलकर मैं तुमको थोड़ा सा सताऊंगी,
और कभी फिर तुमसे छिपकर दूध मलाई खाऊँगी,
जब मुझको डाटोगी तुम तब रूठूँगी इतराउंगी,
फिर चुपके से तुमसे लिपटकर तुम संग मैं सो जाउंगी।

पापा के संग मैं भी एक दिन सब्जी मंडी जाउंगी,
और वहां से झोला भरकर सेब संतरे लाऊंगी,
झोला फटा देखकर मेरा उनको गुस्सा आएगा,
मीठी सी मुस्कान बिखेर तब उनको मैं मनाऊंगी।

पर माँ पापा अब मामला इससे  इतर कुछ लगता है,
बेटी हूँ मैं तेरी पर मुझको तुमसे डर कुछ लगता है,
आज लड़की होने की कीमत फ़िर शायद मैं चुकाउंगी,
क्या एक बार फिर कोख में ही मारी जाउंगी ??

आखिर क्यों | Akhir Kyon



 

आखिर क्यों | Akhir Kyon


आखिर क्यों मैं इतना निर्लज्ज हुआ,
जो उनका प्यार भुला बैठा,
जिनकी उंगलियां पकड़ कर चलना सीखा,
लाठी मैं उनको थमा बैठा।

वो कल की ही तो बातें थी,
जब तुम मुझे खिलाकर खाते थे,
ज़िम्मेदारियों का बहाना देकर ,
तुम्हारा अथाह स्नेह भुला बैठा।

वो कल की ही तो बातें थी,
जब तुम हर सांझ मेरी राह जोहते थे,
परवाह को बंदिश समझ कर मैं,
तुमको अपशब्द सुना बैठा।

वो कल की ही तो बातें थी,
जब तुम मेरी खातिर मिट्टी के घरौंदे बनाते थे,
तुम्हारा घर तोड़कर मैं,
तुमको वनवास पठा बैठा।

Saturday, July 27, 2019

शायर लिख सकता है चिंगारी | Shayar Likh Sakta Hai Chingari



शायर लिख सकता है चिंगारी | Shayar Likh Sakta Hai Chingari


गरीब बच्चे सिग्नल पर, वो रेलवे स्टेशन और क्या बस-अड्डे,
हमेशा मांगते फिरते, दुधमुहे, तुतलाते, अड़ियल, कुछ जिद्दी से,
तुम फेंकते चिल्लर, वो एक रुपया वो दो रुपिया, वो हर्ष और दान का सुख,
कभी रुक-कर सोंचा है उनका भी, किसके तनय हैं वो?
कहीं दूर उनकी माँ, वो माँ जिसका दूध भी शायद पुत्र-विरह में अब सूख चुका है,
फिर क्यों वो शायर, जो लिख सकता है चिंगारी, मग़र वो प्यार लिखता है?

वाह, इतनी शर्म, इतनी हया, और कितने संस्कारों से गुथे-बंधे हो तुम,
पर सोंचो, अगर इतनी अना से तुम बंधे होते, तो फ़िर क्या कोई निर्भया होती?
उस पर तुम्हारा छद्मवेश, जो तुम स्वार्थ हेतु दिन रात रचते हो,
यहाँ होता है, रोज़ जिंदगी से खिलवाड़, बलात्कार और उस पर कोठों पर बिकती अस्मतें,
फिर क्यों वो शायर, जो लिख सकता है चिंगारी, मग़र वो प्यार लिखता है?

वो बाढ़, वो सूखा और सड़ती फसलें, उम्मीदों का होम आंखों के सामने,
ख़्वाबों का टूटना, पाई-पाई को तरसना, फिर फांसी, हाय वो गरीब किसान,
छोड़ो, ये व्यर्थ बातें है, तुम्हे इनसे क्या? तुम्हे तो क्लब जाना है, अपना घर बनाना है, नई गाड़ी चलानी है,
तुम्हारा ये स्वार्थ, ये खुदगर्ज़ी, शायर को रुलाती है,
फिर क्यों वो शायर, जो लिख सकता है चिंगारी, मग़र वो प्यार लिखता है?

वो स्याह काला रंग, दहेज़ और बेटी का घर से विदा ना होना,
वो बाप की मजबूरी, माँ का दुःख और टूट कर बिखरती अनब्याही वधु,
मुख्तलिफ वो जाति का खेल, पाखंड और प्रेम के अपराध में अपने ही परिजनों की जान लेते तुम,
ये अद्धभुत रीतियों से भरा तुम्हारा आधुनिक समाज, इस-पर अंतहीन आडम्बर और खोखली बातें?
फिर क्यों वो शायर, जो लिख सकता है चिंगारी, मग़र वो प्यार लिखता है?

ये तुम्हारा धर्म, ये तुम्हारे लोग और उन-सब का प्यार भी तुम्हारे ही लिए,
पर जब रहते हैं सब यहाँ मिल-जुल कर, तो कौन जलाता है ये मंदिर, ये मस्ज़िद और ये गिरजाघर? ये जो सवाल है ना, ये सवाल तुम्हारे ही लिए है,
वो दंगों में जलते मासूम बच्चे, वो चीखती माएँ, फिर वो पुकार, हाँ उन्हीं विधवाओं की पुकार, जिनके अश्रु भी अब सूख चुके हैं,
विडंबना ये, की तुम्हे देने हैं जवाब, तुम जो इसका कारण हो, हाकिम हो और बने बैठे हो पैगम्बर?
फिर क्यों वो शायर, जो लिख सकता है चिंगारी, मग़र वो प्यार लिखता है?

ये दुःख ये पीड़ा, सब जानता है वो, फ़िर क्यों लिख नही सकता?
जब इतना भला है तो, क्यों गरीबों की आहों के लिए बिक नही सकता?
वो शांत है मौला उसे तुम शांत रहने दो, वो अंतर्विरोध, जलता दिल और उसका मानसिक द्वंद,
फ़िर उसकी रूह का कहना, की जलती आग में फेके वो अगर शब्दों की नई ज्वाला, तो आग भड़केगी, इसमें हुनर है क्या?
वो कहता है, वो रूठों को मिलाएगा, बुझे दीपक जलाएगा, अपने शब्दों से जलती राख में जल देगा, नए पौधे खिलायेगा,
वो शायर, जो लिख सकता है चिंगारी, मग़र वो प्यार लिखता है।।

--विव

@Viv Amazing Life

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